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Monday, November 29, 2010

उदासी का सबब

चित्र गुगल साभार


तेरे ईश्क ने दिल को इस कदर भरमाया है
हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आया है।

न पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब ऐ जहॉं वालों
गैरों ने नहीं हमें तो अपनों ने रूलाया है।

समझ आता नहीं कि शिकवा करू तो किससे करू
जिससे थी वफा की उम्मीद उसने ही सितम ढाया है।

कत्ल करके अरमानों का जो बेदाग निकल जाते है
देख `अमित´ उसने ही तुम्हे आज कातिल बताया है।

Thursday, November 25, 2010

अनजानी मंजिल की ओर





तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन पर
ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना।

तुम्हारी मरमरी बांहों में
बसाना चाहता था
अपनी एक अलग दुनिया।

पर शायद ये मुमकिन नहीं
क्योंकि जाग चुका हूं मैं
एक गहरी नीन्द से।

लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर।

एक पल को लगा था ऐसा
जैसे सिमट गई हो सारी दुनिया
मेरे आगोश में।

फिर से मैंने
अपने आप को पाया
बिलकुल तन्हा और अकेला।

मेरे पास बची थी कुछ यादें
मेरे उन सुनहरे ख्वाबों की।
उनको सम्भाले हुए अपने जेहन में
बढ़ चला एक अनजानी मंजील की ओर।

Friday, November 19, 2010

नाम की लकीर

उनके दिल के किसी कोने में
अपनी भी एक तस्वीर होगी।

उनके हाथों में छोटी ही सही
अपने नाम की भी एक लकीर होगी।

हमने सोचा न था कि
इस तरह मिलोगी तुम हमसे।

पास रहकर भी दूर रहना
हमारी तकदीर होगी।

उनके हाथों में छोटी ही सही
अपने नाम की भी एक लकीर होगी।

Sunday, November 14, 2010

बेवफाई


ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
तेरी मदभरी आंखों से
तेरे कोमल हाथों के स्पर्श से
एक लहर दौड़ जाती है
मेरे नस-नस में शरारों सी।
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं
एक अरसे से पहचानता हूं मैं।
मेरी दुनिया यूं तो सुनसान थी
मेरे दिल की बस्ती वीरान थी
तेरी मुस्कान ने उसमें एक फूल खिलाया था
तेरी सादगी ने मुझे जीना सिखाया था।
तेरी हरेक अदा को पहचानता हूं मैं
ऐसा लगता है कि तुम्हें जानता हूं मैं।
अचानक मेरी आंख खुली और
देखा ये तो एक ख्वाब था
चारों तरफ बिखरी थी कुछ यादें
अपने साथ लेकर फिर से चला मैं
जो कुछ भी मेरा अपना था।
फिर से देखा मैंने तुम्हें
एक शजर के साये में
यूं लगा जैसे
तुम भी इसी भीड़ का हिस्सा हो।
याद रखूंगा तुम्हें क्योंकि
तुम मेरे अतीत का किस्सा हो।
पूछूंगा मैं एक दिन खुदा से कि
तुमने ऐसी चीज क्यों बनाई है
कैसे करूं वफा इनसे
जिनका नाम ही बेवफाई है।

Tuesday, November 9, 2010

प्यार का असर



ऐसी भी क्या बेरूखी कि वो नही आए
जान जाएगी मेरी उनके इन्तजार में।

जुस्तजु थी जिनकी मेरे दिल को
नज़र आए भी वो तो थे हिजाब में।

पी ले गर कोई तेरी मस्त निगाहों से
वो नशा आता नहीं फिर शराब में।

देख `अमित´ अब उनके प्यार का असर
घर से बेघर हुए हम तेरे फिराक़ मे।

Monday, November 8, 2010

भ्रष्टाचार

अरविन्द जी का आज एक आलेख पढ़ा भ्रष्टाचार के बारे में। जिसमें उन्होंने एक बात का जिक्र किया है कि तुम पढ़े लिखे लोग कुए में डुब मरो पत्थर उपर से मैं डाल दुगॉ। बात भी सही है। हमारा देश आज भ्रष्टाचार के मामले में ‘शायद 87 वें नम्बर पर है। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे जैसे पढ़े लिखे लोग। क्योंकि सरकारी नौकरी में पढ़े लिखे लोग ही जाते है। जिन लोगो ने सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली समझ लिजिए उन्होंने भ्रष्टाचार का लाईसेंस ले लिया। आज सरकारी कार्यालय में एक चपरासी से लेकर अफसर तक सारे भ्रष्ट है। कोई पॉंच रूपये की चोरी कर रहा है तो कोई पचास हजार की। इनलोगों को सह मिलती है इनके उपर बैठे नेताओं से। ऐसे कितने नेता हैं जिन्होंने कुर्सी इस अरमान से सम्भाली है कि इन्हें देश या समाज की सेवा करनी है। वरना क्या वजह है कि कुर्सी मिलने से पहले जिनके पास रहने के लिए सही से अपना एक अदद मकान नहीं होता वो पॉंच साल बाद ही करोड़ो में खेलने लगते है, रहने के लिए एक अदद कोठी और घूमने के एक नहीं चार पॉच गाड़ियॉं हो जाती है।जिस तरह से एक बगुला नदी किनारे इस ताक में खड़ा रहता है कि कब कोई मछली दिखाई पड़े और उसे वो लपक ले। ठीक उसी तरह से अपने आप को जनता के सेवक बताने वाले ये नेता और अफसर भी इसी ताक में रहते है कि कब कोई योजना पारित हो और उसे दीमक की तरह चाट जाए। वैसे इस भ्रष्टाचार को फैलने में ये लोग ही नही आम जनता भी उतनी ही दोषी है जितने कि ये लोग। मैं बिहार राज्य का निवासी हुंं। भ्रष्टाचार तो यहॉं एक छुआछूत की बीमारी की तरह फैला हुआ है। बानगी देखिए- हाल ही में हुए शिक्षक बहाली में कई ऐसे लोग भी शिक्षक बने जिन्हे सही तरीके से ये भी नहीं पता कि हमारे देश का राष्ट्रपति कौन है। सोचिए जरा वे बच्चों को कैसी शिक्षा देगें। वैसे लोग अच्छी तरह से जानते है कि निम्न पदों के लिए वे उपयुक्त नहीं है। बाबजूद इसके पैसे दे कर ये लोग नौकरी पा जाते है और उपयुक्त लोग बाहर ही रह जाते है। भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है पैसा। क्योंकि हमारे समाज में पैसे से ही किसी इंसान की पहचान होती है। जिसके पास जितना पैसा होता है उसका रूतवा उतना ही बड़ा होता है। इसांनियत, ईमानदारी, सहिष्णुता ये सारी बातें किताबी और बीते दौर की हो चली है। आज के दौर में अगर गॉंधी जी होते तो ‘शायद उन्हें भी समाज के कटाक्ष और दुत्कार का सामना करना पड़ता। एक कहावत है बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रूपैया। आज के जमाने पर ये बिल्कुल फिट बैठती है।

Sunday, November 7, 2010

मेरा दिल तेरा हो गया है


ना जाने मेरा दिल कहां खो गया है
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
खो गई इन आंखों की नीन्द
और चैन कहीं खो गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
जाड़े कि गुनगुनी धूप में
बारिश की हरेक बून्द में
तेरा ही अक्स नज़र आता है
फूलों की खुश्बू में भी तुम हो मुझे पता है।
जबसे तुम्हें देखा
सारा समां रंगीन हो गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।
हर पल चाहे मेरा दिल
तुझको ही देखा करूं
जब तुम नहीं हो मेरे पास
तुमको ही सोचा करूं।
ये प्यारा-प्यारा चेहरा जिस दिन से देखा है,
ज़िन्दा हूं पर जां कोई और ले गया है।
आज पहली बार समझ में आया कि
मेरा दिल तेरा हो गया है।

Thursday, November 4, 2010

दिवाली

सभी को दिपावली की शुभकामनाएं





ना जाने इस बार ये
कैसी दिवाली आई है
कैसे खरीदे खील-बताशे
कमरतोड़ महगॉंई है।


दिवाली तो कुछ लोगों के लिए है
बाकी का निकला दिवाला है
कैसे सजाएं पुजा की थाली
मुंह से भी दूर निवाला है।

फुलझड़ियॉं, राकेट और पटाखे
कहॉं से ये सब लाउं मैं
राह देखते होगें बच्चे
कैसे अब घर जाउं मैं।

फिर भी दरवाजे पर मैंने
आशा का एक दीप जलाया है
आएगी अपने घर भी खुशियॉं
दिल को यही समझाया है।

Tuesday, November 2, 2010

वो लड.की



उसको देखता हूं तो लगता है यूं
जैसे सुबह की लालिमा लिए
आसमां की क्षितिज पर
एक तारा टिमटिमा रहा हो।
उसकी खामोश निगाहें
कुछ कहना चाहती है मुझसे
होठों पर है ढेर सारी बातें
फिर भी न जाने क्यूं चुप है।
हंसती है वो तो
चमन में फूल खिलते हैं।
बात करती है तो लगता है
दूर कहीं झरने बहते हैं।
उसकी शोख और चंचल अदाएं
मुझको दिवाना बनाती है।
उसकी सादगी हर पल
एक नया संगीत सुनाती है।
इतना तो पता है कि
उसको भी मुझसे प्यार है।
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ,
उस वक्त का इन्तजार है।