चित्र गुगल साभार
कितनी खुबसुरती से
सजाया था हमनेंअपने सपनों का घरौंदा।
वक्त के थपेड़ों से लड़कर
एक एक तिनके को जोड़कर
बड़े अरमानों से
हमने इसे बनाया था।
याद है
तुम हमेशा कहती थी
उगते हुए सुर्य को देखकर
कि जब इसकी लालिमा
हमारे घरौदें पर पड़ती है
तो ये ताजमहल से भी
ज्यादा खुबसुरत
नजर आता है।
अब जबकि
तुम चली गई हो
कभी न आने के लिए
एक बार आकर देखो
तुम्हारे इस घरौंदे की
क्या हालत हो गई है।
जगह जगह से
इसकी छत टूट गई है।
बारिश के मौसम में
कई जगहों से पानी टपकता है।
एक निष्फल
कोशीश करता हुॅ मैं
उस टपकते हुए पानी से
तुम्हारे बनाए गए
उस रंगोली को बचाने की।
लेकिन उसकी रेखाएॅ भी
बिखर गई है
बिल्कुल मेरी तरह।
उस वीरान हो चुके
घरौंदे में
एक थका हारा बुढ़ा
अपने जीवन की
अंतिम सॉसे ले रहा है।
रह रहकर उसकी निगाहें
दरवाजे की ओर उठती है।
किसी को सामने न पाकर
वो अपनी आखें बदंकर
सोचता है कि
कौन है जो उसके बाद
इस घरौंदे को
आबाद रखेगा।
और एक गहरी सॉस लेते ही
उसका शरीर
निष्प्राण हो जाता है।
ऑखें खुली रहती है
जैसे अब भी
किसी का
इंतजार कर रही हो।
टूटे हुए छत से
पानी टपक रहा है।
सुरज की तेज धुप
अपने वजुद का
अहसास करा रही है।